17 Sept 2014

कलम छोड़ अब हाथों में, हथियार उठा लूं सोचा है।- BHAVESH BUMB

कलम छोड़ अब हाथों में, हथियार उठा लूं सोचा है।
दबी हुई है भारत माँ, कुछ भार हटा दूं सोचा है।।

सरे आम जो लूट रहे हैं, इज्ज़त बेटी-बहुओं की।
उनको अब चौराहों पर, फांसी लटका दूं सोचा है।।

राजनीति का अब काला, अध्याय हो गया भारत में।
राजनीति के इन पन्नो को, आग लगा दूं सोचा है।।

बेच रहे जो मातृभूमि को, चंद खनकते सिक्को में।
उन सिक्कों के नीचे ही, उनको दफना दूं सोचा है।।

खून चूस कर निर्बल का, जो रहते राज प्रासादो में।
उनको झोपड-पट्टी का, एहसास करा दूं सोचा है।।

जाने कैसा दंभ है "एक भारतीय", अपने मूर्ख पडोसी को।
फिर से टुकड़े ढाका-से, दो चार करा दूं सोचा है।।