9 Feb 2014

भुखमरी पर हरी ॐ पंवार की कविता


मेरा गीत चाँद है  चांदनी है आजकलना किसी के प्यार की ये रागिनी है आजकल|

मेरा गीत हास्य भी नहीं है माफ़ कीजियेसाहित्य का भाष्य भी नहीं है माफ़ कीजिये|

मै गरीब के रुदन के आंसुओ की आग हूँभूख के मजार पर जला हुआ चिराग हूँ|

मेरा गीत आरती नही है राज पट कीजगमगाती आत्मा है सोये राज घट की|

मेरा गीत झोपडी के दर्दो की जुबान हैभुखमरी का आइना हैआंसू का बयान है|

भावना का ज्वार भाटा जिये जा रहा हू मैक्रोध वाले आंसुओ को पिए जा रहा हू मै|

मेरा होश खो गया है लहू के उबाल मेंकैदी होकर रह गया हूमै इसी सवाल में|

आत्महत्या की चिता पर देख कर किसान कोनींद कैसे  रही है देश के प्रधान को||

सोच कर ये शोक शर्म से भरा हुआ हू मैऔर मेरे काव्य धर्म से डरा हुआ हू मै |

मै स्वयं को आज गुनेहगार पाने लगा हूइसलिए मै भुखमरी के गीत गाने लगा हू|

गा रहा हू इसलिए की इन्कलाब ला सकूं | झोपडी के अंधेरों में आफताब ला सकूं|

इसीलिए देशी और विदेशी मूल भूलकरजो अतीत में हुई है भूलभूल कर|

पंचतारा पद्धति का पंथ रोक टोक करवैभवी विलासिता को एक साल रोक कर|

मुझे मेरा पूरा देश आज क्रुद्ध चाहिएझोपडी की भूख के विरुद्ध युद्ध चाहिए|

मेहरबानों भूख की व्यथा कथा सुनाऊंगामहज तालियों के लिए गीत नहीं गाऊंगा|

चाहे आप सोचते हो ये विषय फिजूल हैकिंतु देश का भविष्य ही मेरा उसूल है|

आप ऐसा सोचते है तो भी बेकसूर हैक्योकिं आप भुखमरी की त्रासदी से दूर है|

आपने देखि नही है भूखे पेट की तड़प , भूखे पेट प्राण देवता से प्राण की झड़प|

मैंने ऐसे बचपनो की दास्ताँ कही हैजहाँ माँ की सुखी छातियों में दूध नही है|

जहाँ गरीबी की कोई सीमा रेखा ही नहीलाखो बच्चे है जिन्होंने दूध देखा ही नहीं|

शर्म से भी शर्मनाक जीवन काटते है वेकुत्ते जिसे चाट चूकेझुटन चाटते है वे|

भूखा बच्चा सों रहा है आसमान ओढ़ करमाँ रोटी कम रही हैपत्थरों को तोड़ कर|

जिनके पाँव नंगे है,और तार तार हैजिनकी सांस सांस साहूकारों की उधार है|

जिनके प्राण बिन दवाई मृत्यु के कगार हैआत्महत्या कर रहे है भूख के शिकार है |

बेटियाँ जो शर्मो हया होती है जहान कीभूख ने तोडा तो वस्तु हो गई दुकान की|

भूख आत्माओ का स्वरूप बेच देती हैनिर्धनों की बेटियों का रूप बेच देती है|

भूख कभी कभी ऐसे दांव पेंच देती हैसिर्फ 2000 में माँ बेटा बेच देती है|

भूख आदमी का स्वाभिमान तोड़ देती हैआन बान शान का गुमान तोड़ देती है|

भूख सुदमाओ का अभिमान तोड़ देती हैमहाराणा प्रताप की भी आन तोड़ देती है|

किसी किसी मौत पर धर्म कर्म भी रोता है,क्योंकि क्रिया क्रम का भी पैसा नहीं होता है|

घरवाले गरीब आंसू गम सहेज लेते हैबिना दाह संस्कार मुर्दा बेच देते है|

थूक कर धिक्कारता हू , मै ऐसे विकास कोजो कफ़न भी देना पाए गरीबों की लाश को|

भूख का निदान झूटे वायदों में नही हैसिर्फ पूंजीवादियो के फायदे में नही है|

भूख का निदान कर्णधारों से नही हुआगरीबी हटाओ जैसे नारों से नही हुआ|

भूख का निदान प्रशाशन का पहला धर्म हैगरीबों की देखभाल सिंहासन का धर्म है|

इस धर्म की पलना में जिस किसी से चुक होउस के साथ मुजरिमों के जैसा ही सलूकहो|

भूख से कोई मरे ये हत्या के समान हैहत्यारों के लिए मृत्युदंड का विधान है|

कानूनी किताबो में सुधर होना चाहिएमौत का किसी को जिम्मेदार होना चाहिए|

भूखो के लिए नया कानून मांगता हु मैसमर्थन में जनता का जूनून मांगता हु मै|

ख़ुदकुशी या मौत का जब भुखमरी आधार होउस जिले का जिलाधीश सीधा जिम्मेदारहो|

वह का एम् एल  , एम् पी भी गुनेहगार हैक्योंकि ये रहनुमा चुना हुआ पहरेदार है|

चाहे नेता अफसरों की लॉबी आज क्रुद्ध होहत्या का मुकदमा इन्ही तीनो के विरुद्धहो|

अब केवल कानून व्यवस्था को रोक सकता हैभुखमरी से मौत एकदिन में रोक सकताहै|

आज से ही संविधान में विधान कीजयेएक दो कोल्लेक्टरो को फंसी तंग दीजिये|

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