12 Mar 2015

प्रायस करते रहे

                                                                       

                                                 प्रायस करते रहे
एक आदमी कही से गुजर रहा था | तभी उसने सड़क के किनारे बंधे हाथियो को देखा | बह आगे निकलने ही बाला था कि हाथियो के पैरों को देखकर अचानक ही रुक गया |उसने देखा कि हाथियो के अगले पैर मे एक रस्सी बंधी हुई थी | उसे इस बात पर बड़ी हेरानी हुई कि हाथी जैसे बिशालकाय जीब लोहे कि भारी जंजीरों के बजाय बस एक छोटी सी रस्सी से बंधे हुए हे ? यह स्पस्ट दिखाई देता था कि बे जब भी चाहते, इस रस्सी को तोड़कर आजाद हो सकते थे और कही भी जा सकते थे | लेकिन कोई बजह थी कि बे ऐसा कर ही नहीं रहे थे | उसने पास खड़े महाबत से पूछा  कि भला ये हाथी इतनी शांति से क्यो खड़े हे और भागने की कोशिश क्यो नही कर रहे | महाबत बोला – इन हाथियो को इस रस्सी से तब से बांधा जाता हे, जब ये छोटे - छोटे थे  ? तब ये कोशिश करने के बाबजूद इसे तोड़ नहीं पाते थे | बार –बार कोशिश  करने पर भी बिफल रहने पर इन्हे यह यकीन हो गया कि ये इन रस्सियों को तोड़ ही नहीं सकते | अब इतना समय बीतने के बाद भी ये इन रस्सियों को तोड़ने की कोशिश ही नहीं करते क्यो कि ये उसी बात को सच मान बैठे हे | हाथियो के इस ब्यबाहर से उस ब्यक्ति को एक उपयोगी सीख मिल गई थी |
मंत्र : अपनी बिफलताओ को शाश्बत मानकर प्रायस करना न छोड़ दे | 




special thanks to hello- pappu <hellopappu216@gmail.com>

No comments: