त्योहार सामाजिक बंधनों को प्रगाढ़ बनाने का एक माध्यम है। यह एक बहाना है अपनों से मिलने का, लड़ाई-झगड़ा भूलाकर एक होने का और ईश्वर की आराधना का। हमारे देश में यह मान्यता प्रचलित है कि ईश्वर सृष्टि के कण-कण में विद्यमान है। ईश्वर केवल मंदिरों या मस्जिदों में नहीं बसता है बल्कि यह तो इस संपूर्ण प्रकृति में बसता है। ईश्वर के इन्ही रूपों को नमन करते हुए देश में अनेक त्योहार मनाए जाते हैं।
भारत विविधताओं में एकता वाला देश है। यहाँ हर जाति व संस्कृति व धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं। हमारे यहाँ कई त्योहार मनाए जाते हैं, जो ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने तथा सामाजिक संबंधों को नई मजबूती प्रदान करने के लिए मनाए जाते हैं।
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लाल, हरी, नीली, पीली आदि रंग-बिरंगी पतंगें जब आसमान में लहराती हैं तो ऐसा लगता है मानो इन पतंगों के साथ हमारे सपने भी हकीकत की ऊँचाईयों को छू रहे हैं और हम सभी सारे गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे की पतंगों के पेंच लड़ा रहे हैं। |
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मकर संक्राति भी इन्हीं त्योहारों में से एक है। यह त्योहार इस संपूर्ण सृष्टि में ऊर्जा के प्रमुख स्त्रोत सूर्य की आराधना के पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन सूर्य सिंह राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायन होने के साथ ही मौसम में परिवर्तन होता है और त्योहार के रूप में खुशियाँ मनाई जाती हैं। कहा जाता है कि इस दिन के बाद हर दिन तिल के बराबर बड़ा होता जाता है।
हर प्रांत हर रंग :-
भारत के अलग-अलग प्रांतों में इस त्योहार को अलग-अलग ढंग से मनाया जाता है लेकिन इन सभी के पीछे मूल ध्येय एकता, समानता व आस्था दर्शाना होता है। मकर सक्रांति को पोंगल, लोहड़ी, पतंग उत्सव, तिल सक्रांति आदि नामों से भी जाना जाता है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने का, तिल-गुड़ खाने का तथा सूर्य को देने का अपना एक महत्व है।
बचपन की यादें ताजा करने व दोस्तों के साथ फिर से हँसी-ठहाके करने का त्योहार मकर सक्रांति है। गिल्ली-डंडे के खेल के रूप में मौज-मस्ती के एक बहाने के रूप में म.प्र. में यह त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार पर परिवार के बच्चे से लेकर बूढ़े सभी एक साथ गिल्ली-डंडे के इस खेल का आनंद उठाते हैं।
लाल, हरी, नीली, पीली आदि रंग-बिरंगी पतंगें जब आसमान में लहराती हैं तो ऐसा लगता है मानो इन पतंगों के साथ हमारे सपने भी हकीकत की ऊँचाईयों को छू रहे हैं और हम सभी सारे गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे की पतंगों के पेंच लड़ा रहे हैं।
गुजरात में मकर सक्रांति के दिन पतंगबाजी के आयोजन में इसी प्रकार का सांप्रदायिक सद्भाव देखने को मिलता है। यहाँ अलसुबह ही सभी लोग अपने घरों की छतों पर जमा होकर पतंगबाजी करके खुशी व उल्लास के साथ इस त्योहार का भरपूर लुत्फ उठाते हैं।
कहते हैं जिंदगी बहुत छोटी है और यदि हम इस छोटी सी जिंदगी में भी अपनों से बैर पालकर बैठ जाएँ तो जिंदगी का क्या मजा आएगा? इस दिन सभी पुराने गिले-शिकवे भूलाकर तिल-गुड़ से मुँह मीठा कर दोस्ती का एक नया रिश्ता कायम किया जाता है। समूचे महाराष्ट्र में इस त्योहार को रिश्तों की एक नई शुरुआत के रूप में मनाया जाता है। कुछ इसी तरह पंजाब में 'लोहड़ी' के रूप में तो तमिलनाडु में 'पोंगल' के रूप में इस त्योहार को मनाते हुए प्रकृति देवता का नमन किया जाता है।
क्या करें :-
हमारे धार्मिक आख्यानों के अनुसार मकर संक्राति के दिन हमें ब्रह्म मूहर्त में किसी पवित्र नदी में स्नान कर सूर्य देवता को देना चाहिए। उसके बाद यथोचित दान-धर्म कर अपने ईश्वर का नमन करना चाहिए तथा अपनों के साथ खुशियाँ बाँटकर इस त्योहार को मनाना चाहिए।
हर त्योहार हमारे लिए कुछ न कुछ संदेश लेकर आता है। मकर सक्रांति का त्योहार भी हमें भेदभाव भूलाकर एकजुट होने का संदेश देता है। तो क्यों न इस दिन हम सभी एक-दूसरे के साथ प्रेम, आत्मीयता व सम्मान का एक नया रिश्ता कायम करें। |
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