70 का दशक भारतीय उद्योग को नई दिशा देने वाला माना जा सकता है. यह वह दशक था जब कई उद्यमियों ने आम सोच से हटकर, अपनी आर्थिक, सामाजिक स्थितियों की परवाह न करते हुए अपना छोटा सा कारोबार शुरू किया और आज वे भारत ही नहीं एशिया के करोड़पति-अरबपतियों की सूची में शामिल हैं. नए उद्योगपतियों के लिए इनकी कहानी किसी प्रेरणा से कम नहीं.
किरण मजूमदार शॉ: फोर्ब्स की दुनिया की 50 अरबपति महिलाओं की सूची में शामिल किरण मजूमदार शॉ और इनकी कंपनी बायोकॉन आज किसी परिचय और नाम की मुहताज नहीं है. किरण मजूमदार शॉ कभी अपना कारोबार शुरू करने के लिए आर्थिक परेशानियों से घिरी थीं. कोई भी बैंक इन्हें लोन देने को तैयार नहीं था. नारायण मूर्ति की ही तरह इन्होंने भी 10000 की शुरुआती पूंजी से अपने किराए के मकान से ही बायोकॉन की शुरुआत की थी. बेंगलोर में जन्मी, पली-बढ़ी किरण मजूमदार ने डॉक्टर बनना चाहती थीं. पर डॉक्टरी का सपना छोड़कर इन्होंने बेंगलोर से ही जूलॉजी ऑनर्स किया. साधारण जूलॉजी ऑनर्स की पढ़ाई को ही अपना पेशा बनाते हुए किरण ने 1978 में बायोकॉन की शुरुआत की. पर इसे शुरू करना इतना आसान नहीं था. आज किरण मजूदमदार शॉ के नाम पर लाखों के इंवेस्टमेंट के लिए कई कंपनियां, बैंक तैयार हो जाएंगे, पर तब इस युवा लड़की को इसके नए बिजनेस की शुरुआत के लिए बैंक ने लोन देने से मना कर दिया था. इसके अलावे भी कई मुश्किल हालात थे. भारत जैसे देश में जहां मूलभूत बिजली और शुद्ध पानी की आपूर्ति करना भी एक समस्या है, किरण ने एक फॉर्मास्यूटिकल कंपनी शुरू करने का साहस किया था. उस पर भी आर्थिक तंगी के हालात में कंपनी शुरू करने के लिए कोई जगह किराए पर लेना भी संभव नहीं था. कंपनी के लिए प्रशिक्षित कर्मचारियों की भर्ती करना एक चुनौती है. एक तो नई कंपनी, उस पर काम के लिए जरूरी वेतन देना, हर चीज चुनौतीपूर्ण था. पर इन सारी चुनौतियों को पार करते हुए किरण ने बायोकॉन शुरू किया. इतना ही नहीं एक साल के अंदर यह भारत से अमेरिका और यूरोप को एंजाइम निर्यात करने करने वाली पहली कंपनी बन गई. आज बायोकॉन भारत की प्रतिष्ठित कंपनियों में है और इसकी संपत्ति अरबों की है.
धीरूभाई अंबानी: धीरजलाल हीरालाल अंबानी बाद में धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani) के नाम से जाने गए. आज शायद देश का बच्चा-बच्चा धीरूभाई अंबानी और रिलायंस इंडस्ट्रीज का नाम जानता हो. पर एक सामान्य गुजराती शिक्षक परिवार से ताल्लुक रखनेवाले धीरूभाई अंबानी से भारत की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी का मालिक करोड़पति धीरूभाई अंबानी बनना इतना आसान नहीं था. कहते हैं कारोबार का कीड़ा धीरूभाई के दिमाग में पहले ही था. पर पैसों की तंगी के कारण ऐसा संभव नहीं था. धीरूभाई अंबानी केवल 500 रु. लेकर विदेश गए और 15000 की जमा-पूंजी के साथ 1962 में भारत लौटकर रिलायंस इंडस्ट्रीज की स्थापना की. 1977 में पब्लिक जानकारी में आई आरआईएल की 2007 तक 60 बिलियन डॉलर संपत्ति ने अंबानी परिवार को दुनिया के दूसरे सबसे अमीर परिवारों की श्रेणी में ला दिया. आज आरआईएल पेट्रोकेमिकल्स (petrochemicals), रिफाइनिंग (refining), ऑयल एंड गैस (oil and gas) आदि कई क्षेत्रों में अपने व्यापार कर रहा है.
सुनील मित्तल (Sunil Mittal): भारती एयरटेल के मालिक सुनील भारती पहले भारतीय माने जाते हैं जिन्होंने टेलीकम्यूनिकेशन में उज्ज्वल भविष्य देखते हुए टेलीकम्यूनिकेशन को बिजनेस का आधार बनाया और भारती एंटरप्राइज की स्थापना की. 18 साल की उम्र में अपने पिता से 20 हजार रुपए उधार लेकर उन्होंने अपना पहला बिजनेस शुरू किया था. 1980 में अपने भाई के साथ मिलकर भारती ओवरसीज ट्रेडिंग लिमिटेड की स्थापना की. वे जापान से सुजुकी मोटर्स की पोर्टेबल इलेक्ट्रिक जेनेरेटर्स के आयात के बिजनेस में थे, पर अचानक ही भारत सरकार ने इस पर बैन लगा दिया. उस समय सुनील मित्तल के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई, कि अब क्या? फिर 1984 में उन्होंने पुश-बटन फोन का बिजनेस शुरू किया. 1992 में बीटल के नाम से आंसरिंग मशीन फोन बनाना शुरू किया. बीटल सक्सेसफुल रहा. 1992 में उन्होंने मोबाइल फोन नेटवर्क नीलामी (mobile phone network licences auctioned ) में बिड किया. इसकी प्रमुख शर्त थी कि बिडर को मोबाइल ऑपरेटिंग में एक्सपीरिएंस होना चाहिए. अत: फ्रेंच टेलीकॉम ग्रुप विवेंदी का लाइसेंस मित्तल को मिल गया. 1994 में उनके मोबाइल टेलीकॉम बिजनेस को भारत सरकार द्वारा मान्यता मिल गई. 1995 में भारती सेल्यूलर लिमिटेड (बीसीएल) के अंतर्गत एयरटेल (AirTel) के नाम सेल्यूलर सर्विस दिल्ली में शुरू हुई. आज भारती एयरटेल की संपत्ति, सेवा और नाम से हर कोई परिचित है.
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