9 Feb 2014

अभी वतन आजाद नही, आजाद हिंद तू फ़ौज बना- भावेश बम्ब

श्रम करके संध्या को घर में, अपने बिस्तर पर आया था

उस दिन ना जाने क्यों मैंने, मन में भारीपन पाया था |

जब आँख लगी तो सपने में लहराता तिरंगा देखा था

राष्ट्र ध्वजा की गोद लिए, भारत माँ का बेटा था |

जयहिंद का नारा बोल बोल के आकर वह चिल्लाये थे

उस रात स्वंय बाबू सुभाष, मेरे सपने में आये थे |

बोले भारत भूमि में जन्मा है, तू कलंक क्यों लजाता है

राग द्वेष की बातो पर, क्यों अपनी कलम चलाता है |

इन बातो पर तू कविता लिख, मै विषय तुम्हे बतलाता हूँ

वर्तमान के भारत की मै,झांकी तुझे दिखाता हूँ |

हमने पूनम के चंदा को राहू को निगलते देखा है

हमने शीतल सरिता के पानी को उबलते देखा है |

गद्दारों की लाशों को चन्दन से जलते देखा है

भारत माता के लालों को शोलो पर चलते देखा है |

देश भक्त की बाहों में सर्पों को पलते देखा है

हमने गिरगिट सा इंसानों को रंग बदलते देखा है |

जो कई महीनो से नही जला हमने वो चूल्हा देखा है

हमने गरीब की बेटी को फाँसी पर झूला देखा है |

हमने दहेज़ बिन ब्याही बहुओ को रोते देखा है

मजबूर पिता को गर्दन बल पटरी पर सोते देखा है |

देश द्रोही गद्दारों के चहरे पर लाली देखी है

हमने रक्षा के सौदों में होती हुई दलाली देखी है |

खादी के कपड़ो के भीतर हमने दिल काला देखा है

इन सब नमक हरामो का,शेयर घोटाला देखा है |

हमने तंदूर में नारी को रोटी सा सिकते देखा है

लाल किले के पिछवाड़े, अबला को बिकते देखा है |

राष्ट्रता की प्रतिमाओ पर,लगा मकड़ी का जाला देखा है

जनपद वाली बस्ती में हमने कांड हवाला देखा है |

आतंकवाद के कदमों को इस हद तक बढ़ते देखा है

अमरनाथ में शिव भक्तों को हमने मरते देखा है |

होटल ताज के द्वारे, उस घटना को घटते देखा है

माँ गंगा की महाआरती में, बम फटते देखा है |

हमने अफजल की फाँसी में संसद को सोते देखा है

जो संसद पर बलिदान हुए, उनका घर रोते देखा है |

उन सात पदों के सूरज को भारत में ढलते देखा है

नक्शलवाद की ज्वाला में, मैंने देश को जलते देखा है |

आजादी के दिन दिल्ली,बन गई दुल्हनिया देखी है

15 अगस्त के दिन भोलू की भूखी मुनिया देखी है |

हमने संसद के अन्दर राष्ट्र की भ्रस्टाचारी देखी है

हमने देश के साथ स्वयं, होती गद्दारी देखी है |

ये सारी बाते सपने में नेता जी कहते जाते थे

उनकी आँखों से झर झर आंसू भी बहते जाते थे |

बोले जा बेटे भारत माता के, अब तू सोते लाल जगा

अभी वतन आजाद नही, आजाद हिंद तू फ़ौज बना |


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1 comment:

Unknown said...

बहुत खुब, आज की परिस्थितियों पर सही बैठती है, भावेश बाबु।कलम नहीं रुकनी चाहिए आपकी।