19 Feb 2014

सफलता का राजमार्ग असफलता कि सुरंग से ही निकलता है


सफलता का राजमार्ग असफलता कि सुरंग से ही निकलता है

सफलता एक छोटा पर बहुत ही महत्वपूर्ण शब्द, हर एक व्यक्ति के अस्तित्व कि पहचान है सफलता, चाहे वो एक साधारण सा अनपढ़ मजदूर हो, या किसान हो, या एक student हो या फिर कोई छोटा-बड़ाbusiness men  हो, हर कोई अपने क्षेत्र में उच्च कोटि कि सफलता प्राप्त करने को आतुर है और साथ ही प्रयत्नशील भी।

     पर क्या success पाना इतना आसन है कि हर कोई पा जाये, यदी हाँ तो फिर सफलता के प्रयास में लगे व्यक्ति को गर थोड़ा असफलता का स्वाद चखना पड़ जाता है तो वह विचिलित क्यों हो उठाता है? जब व्यक्ति लगातार सफलता के पथ पर बढ़ता रहता है तो वो खुश होता है और उससे भी आगेकि सफलता को पाने के प्रयत्न में उत्साह के साथ लगातार लगा रहता है।

    पर यही पर गर वो थोड़ा असफल हो जाता है तो वो इतना निराश हो जाता है कि, कभी-कभी तो वह जीवन का साथ तक छोड़ने के विचार अपने अंदर लाने लगता  हैं। क्या सफलता जीवन में इतना महत्वपूर्ण स्थान रखती है कि जरा सी असफलता व्यक्ति को तोड़ कर रख देती है? क्या असफलता का जीवन में कोई स्थान नहीं है ? हाँ ये सच है कि किसी को भी जीवन में असफलता का कड़वा स्वाद पसंद नहीं है, पर ये भी सच है कि सफलता का राजमार्ग असफलता कि सुरंग से ही निकलता है। 

     यदी किसी भी व्यक्ति के जीवन में उसके निर्धारित aim कि प्राप्ति में बाधाएं आ रही हैं या वो उनको पाने में बार - बार असफल हो रहा है तो उसे अपनी लछ्य कि प्राप्ति के लिए थोड़ा रुकना चाहिए और अपनी सफलता कि प्राप्ति में बाधक बने कारणों को खोजना चाहिए, जिनके कारण बार- बार असफलता का मुख देखना पड़ा। इन कारणों को ढूँढ कर उनका सावधानी से निराकरण करना चाहिए क्योंकि सफलता के सूत्र असफलताओं के झंझावातों से निकलते हैं । जब हम असफलता के कारणों को ढूंढ कर उनका निराकरण कर देते हैं तो फिर सफलता शत-प्रतिशत सुनिश्चित हो जाती है, और फिर इस सफलता को कोई रोक नहीं पाता।

    सफलता के परिद्रश्य में हम केवल उन बातों पे गौर करते हैं जिनका हमें क्रियान्वन करना होता है, परन्तु असफलता से हम उन स्थितियों व कारणों का भेद ढूढ़ते है जिनको सुधर कर उन में आवश्यक परिवर्तन कर अपनाते है, जिनसे हमें फिर सफलता सत- प्रतिशत अवश्य मिलती है।

    अतः असफलता के निदान- निराकरण में सफलता का सौन्दर्य निखरता है, और इस सफलता का सेहरा उसी के सिर बंधता- सजता है, जो अपने कर्तव्य और भावनाओं के बीच के द्वन्द में जीत को सुनिश्चित करता है

    क्योंकि मनुष्य के अंदर का द्वन्द असफलता का कारण होता है, व्यक्ति के अंदर का द्वन्द उसकी सम्पूर्ण मानसिक एवं भावनात्मक शक्ति को नष्ट कर देता है। जब व्यक्ति के पास positive energy ही नहीं होगी तो वो अपने aim- सफलता कि प्राप्ति के लिए आवश्यक साहस, शौर्य, पराक्रम कहाँ से जुटा पायेगा, अतः मनुष्य जब अपने अस्तित्व को धार दार व्रज बना कर अपने aim पर टूट पड़ता है तो उससे सफलता दूर नहीं, क्योंकि इससे कम में सफलता कि प्राप्ति संभव नहीं है।


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